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जाति व्यवस्था सिर्फ दलितों का ही नही बल्कि समग्र भारतवर्ष का प्रश्न है । लगभग साढ़े तीन हजार वर्ष पूर्व, अस्तित्व में आई यह जटिल और सामंती जाति व्यवस्था ने भारतीय समाज के प्रत्येक घटक को दूषित किया है । तथागत बुद्ध से लेकर डॉ. बाबासाहब अंम्बेडकर तक और संत कबीर से ज्योतिबा फूले, रामास्वामी पेरियार आदि तक का जातिविहीन समाज की स्थापना करने का अविरल प्रयास जारी रहा है । इसी के चलते राष्ट्रीय दलित अधिकार मंच भी जातिनिर्मूलन करने के दिशा में प्रयत्नशील है । बिहार के पटना में राष्ट्रीय दलित अधिकार मंच ने दलित विमर्श पर परिचर्चा का आयोजन किया । आज के वक्त में दलितों के ऊपर हमला जहां पुरजोर हो रहा है वहीं लड़ने वाली ताकत भी मुखरता से आगे आ रही है ।  वंचितों की लड़ाई में समूचे समाज की भलाई समाहित है । आज का वक्त फासीवादी, सांप्रदायिक ताकतों से संविधान को बचाने की लड़ाई है । ये परिचर्चा उसी लड़ाई का हिस्सा थी ।


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