RSS की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की इस सूची ने साबित कर दिया कि RSS के लिए हिन्दु का मतलब सिर्फ ब्राह्मण है !
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ पर प्रगतिवादी लेखकों और बहुजन चिंतकों की तरफ से दो बातों पर सवाल हमेशा से सवाल उठते रहे हैं, एक तो आरएसएस का देश के स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान और दूसरा आरएसएस में हिन्दु के नाम पर ब्राह्मण नेतृत्व।
आरएसएस की स्थापना 1925 में केशव बलिराम हेडगेवार ने नागपुर ने की थी। इसकी स्थापना के बाद से आज तक संघ में महाराष्ट्रीयन ब्राह्मण पुरुषों का वर्चस्व हावी रहा है।
स्थापना के बाद से अभी तक संघ को 6 सरसंघचालक यानि मुखिया मिले, लेकिन बिडंबना देखिए हिन्दुओं की बात करने वाले संगठन के मुखिया 5 बार महाराष्ट्र के ब्राह्मण और सिर्फ एक बार राजपूत जाति के राजेंद्र सिंह उर्फ रज्जू भैया बन सके।
इतना ही नहीं संघ के अन्य उच्च पदों पर भी हमेशा से ही ब्राह्मण वर्चस्व हावी रहा है।
1-डॉक्टर केशवराव बलिराम हेडगेवार (1925-1940)
2- माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर (1940-1973)
3- मधुकर दत्तात्रय देवरस (1973-1993)
4- प्रोफ़ेसर राजेंद्र सिंह रज्जू भैया (1993-2000)
5- कृपाहल्ली सीतारमैया सुदर्शन (2000-2009)
6-डॉ. मोहनराव मधुकरराव भागवत (2009…)
शायद यही वजह है कि आंबेडकरवादी चिंतक राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ को हिन्दु नहीं ब्राह्मण पुरुषों का संगठन कहते हैं। जिसका उद्देश्य ऐन-केन प्रकारेण ब्राह्मण वर्चस्व की पुनर्स्थापना है।
तमाम विरोधों के बाद भी 1925 के बाद 2018 आने तक आरएसएस अपने जाति चरित्र में बदलाव नहीं कर पाया। 2018 के लिए आई आरएसएस की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की सूची सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है जिसको देखकर लोग सवाल कर रहे है कि क्या आरएसएस के लिए हिंदु का मतलब सिर्फ ब्राह्मण है?
कुल संख्या- 49
ब्राह्मण- 39, वैश्य- 4, कायस्थ- 2, खत्री- 2, जैन- 2
मोहन भागवत जी (सरसंघचालक) (ब्राह्मण)
सुरेश भैया जी जोशी (सरकार्यवाह) (ब्राह्मण)
सुरेश सोनी जी (सह सरकार्यवाह) (वैश्य)
दत्तात्रेय होसबाले जी (सह सरकार्यवाह) (ब्राह्मण)
डॉ. कृष्णगोपाल जी (सह सरकार्यवाह) (ब्राह्मण)
श्री वी भागय्या जी (सह सरकार्यवाह) (ब्राह्मण)
श्री मनमोहन वैद्य जी (सह सरकार्यवाह) (ब्राह्मण)
श्री मुकुंद जी (सह सरकार्यवाह) (ब्राह्मण)
श्री सुनील कुलकर्णी जी (शारीरिक प्रमुख) (ब्राह्मण)
श्री जगदीश प्रसाद जी (सह शारीरिक प्रमुख) (ब्राह्मण)
श्री स्वांत रंजन (बौद्धिक प्रमुख) कायस्थ
श्री सुनील मेहता जी (सह बौद्धिक प्रमुख) (ब्राह्मण)
श्री पराग अभ्यंकर जी (सेवा प्रमुख) (ब्राह्मण)
श्री राजकुमार मटाले जी (सह सेवा प्रमुख) (ब्राह्मण)
श्री मंगेश भेंडे जी (व्यवस्था प्रमुख) (ब्राह्मण)
श्री अनिल ओक जी (सह व्यवस्था प्रमुख) (ब्राह्मण)
श्री अरुण कुमार जी (प्रचार प्रमुख) (ब्राह्मण)
श्री नरेंद्र कुमार जी (सह प्रचार प्रमुख) (ब्राह्मण)
श्री अनिरुद्ध देशपांडे जी (सम्पर्क प्रमुख) (ब्राह्मण)
श्री सुनील देशपांडे जी (सह सम्पर्क प्रमुख) (ब्राह्मण)
श्री रमेश पप्पा जी (सह सम्पर्क प्रमुख) (ब्राह्मण)
श्री सुरेश चन्द्र जी (प्रचारक प्रमुख) (ब्राह्मण)
श्री अद्वैतचरण दत्त जी (सह प्रचारक प्रमुख) (ब्राह्मण)
श्री अरुण जैन जी (सह प्रचारक प्रमुख) (जैन बनिया)
श्री शंकरलाल जी (सदस्य) (ब्राह्मण)
डॉ. दिनेश कुमार जी (सदस्य) (ब्राह्मण)
श्री इंद्रेश कुमार जी (सदस्य) (ब्राह्मण)
श्री अशोक बेरी जी (सदस्य) (वैश्य)
श्री सुहास हिरेमठ जी (सदस्य) (ब्राह्मण)
श्री गुणवंत सिंह कोठारी जी (सदस्य) (वैश्य)
श्री मधुभाई कुलकर्णी जी (सदस्य) (ब्राह्मण)
श्री हस्तीमल जी(निमंत्रित सदस्य) (ब्राह्मण)
श्री विनोद कुमार जी (निमंत्रित सदस्य) (कायस्थ)
श्री जे. नंदकुमार जी (निमंत्रित सदस्य) (ब्राह्मण)
श्री सुनील पद गोस्वामी जी (निमंत्रित सदस्य) (ब्राह्मण)
श्री सेतुमाधवन जी (निमंत्रित सदस्य) (ब्राह्मण)
श्री गौरीशंकर चक्रवर्ती जी (निमंत्रित सदस्य) (ब्राह्मण)
श्री शरद ढोले जी (निमंत्रित सदस्य) (ब्राह्मण)
श्री सुब्रमण्य जी (निमंत्रित सदस्य) (ब्राह्मण)
श्री रविंद्र जोशी जी (निमंत्रित सदस्य) (ब्राह्मण)
श्री श्याम प्रसाद जी (निमंत्रित सदस्य) ( (ब्राह्मण)
श्री सांकलचंद बागरेचा जी (निमंत्रित सदस्य) (वैश्य)
श्री दुर्गा प्रसाद जी (निमंत्रित सदस्य) (ब्राह्मण)
श्री अलोक जी (निमंत्रित सदस्य) (ब्राह्मण)
श्री रामदत्त जी (निमंत्रित सदस्य) (खत्री)
श्री प्रदीप जोशी जी (निमंत्रित सदस्य) (ब्राह्मण)
श्री बालकृष्ण त्रिपाठी जी (निमंत्रित सदस्य) (ब्राह्मण)
1- किसी भी एक जाति के सदस्य अगर किसी संगठन में होते हैं तो उस जाति के संगठन के नाम से बुलाया जाता है जैसे दलित संगठन, पिछड़ा संगठन, कुर्मी समाज का संगठन, यादवों का संगठन अगर आरएसएस के शीर्ष पर सिर्फ ब्राह्मणों को पहुंचने का हक है तो क्यों ना इसे ब्राह्मण समाज के पुरुषों का संगठन कहा जाए।
2-सवर्णवादी मानसिकता के लोग पिछड़ों की हिस्सेदारी को लेकर अक्सर परेशान दिखाई देते हैं। ओबीसी के विभाजन के लिए कभी अति पिछड़ों को यादव के खिलाफ भड़काते हैं कभी कुर्मी, कुशवाहा, जाट या गुर्जर के लिए। वो कहते हैं कि ओबीसी का आरक्षण कुछ खास जाति के लोग ही खा जाते हैं सभी को हिस्सेदारी नहीं मिल पाती।
बड़ा सवाल ये है कि सवर्णों की हिस्सेदारी कौन खा रहा है। आरएसएस अगर सवर्णों का संघ होता तो उसमें राजपूत, बनिया, कायस्थों का भी पर्याप्त प्रतिनिधित्व होता लेकिन इसकी सूची देखकर स्पष्ट है कि ये सिर्फ ब्राह्मण वर्चस्ववादी संगठन है।
जब अपने ही संगठन में हिस्सेदारी की बात नहीं तो पिछड़ों और दलितों में हिस्सेदारी को लेकर इतना कष्ट क्यों?
करण सागर
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